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ग़ज़ल
वो मानूस सलोने चेहरे जाने अब किस हाल में हैं
जिन को देख के ख़ाक का ज़र्रा ज़र्रा आँखें मलता था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
मुझ से ज़ियादा वक़्त भला क्यों बंसी बैरन पाती है
पूछ रही है राधा प्यारी अपने श्याम सलोने से
हीरालाल यादव हीरा
ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं