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ग़ज़ल
कहीं कहीं सलसबील ओ कौसर की जोत मौजूद थी ज़मीं पर
कहीं कहीं अर्श-ओ-आसमाँ थे हुज़ूर को कुछ तो याद होगा
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
मोहब्बत जू-ए-शीर-ए-कुन मोहब्बत सलसबील-ए-हक़
मोहब्बत अब्र-ए-रहमत है मोहब्बत हौज़-ए-कौसर है
शहज़ाद क़ैस
ग़ज़ल
ये नज़र की तिश्नगी ये सलसबील-ए-हुस्न-ए-यार
जी सुलगता है लबों के पास दरिया देख कर
नसीम शामाइल पूरी
ग़ज़ल
जाने किस रंग से आई है गुलिस्ताँ में बहार
कोई नग़्मा ही नहीं शोर-ए-सलासिल के सिवा
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
सहरा ज़िंदाँ तौक़ सलासिल आतिश ज़हर और दार ओ रसन
क्या क्या हम ने दे रखे हैं आप के एहसानात के नाम
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
दो तीन झटके दूँ जूँ ही वहशत के ज़ोर में
ज़िंदाँ में टुकड़े होवें सलासिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ये ज़ुल्फ़ ख़म-ब-ख़म न हो क्या ताब-ए-ग़ैर है
तेरे जुनूँ-ज़दे की सलासिल को थामना