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ग़ज़ल
मैं तिरे साहिल पे आया हूँ कि देखूँ तेरा ज़र्फ़
ऐ समुंदर तुझ से किस ने कह दिया प्यासा हूँ मैं
शाहिद जमाल
ग़ज़ल
मैं भी प्यासा हूँ तिरे दर पे खड़ा हूँ कब से
तू समुंदर है मुझे एक ही क़तरा दे दे
संजय मिश्रा शौक़
ग़ज़ल
समंद-ए-नाज़ की टापों से सर टकराएँ सब आशिक़
पिला शर्बत शहादत का किसी दिन कासा-ए-सम से
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
रवाँ है कौन सी मंज़िल को ये अठखेलियाँ करती
नदी को क्या ख़बर मेरा समुंदर कितना प्यासा है