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ग़ज़ल
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मोहब्बत अस्ल में 'मख़मूर' वो राज़-ए-हक़ीक़त है
समझ में आ गया है फिर भी समझाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं
लाख समझाया कि इस महफ़िल में अब जाना नहीं
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कभी कभी यूँ भी हम ने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
क्या मिला आख़िर तुझे सायों के पीछे भाग कर
ऐ दिल-ए-नादाँ तुझे क्या हम ने समझाया न था