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ग़ज़ल
तुम्हारे दर्द-ए-सर से संदली-रंगो अगर जी दूँ
तू छापे क़ब्र पर देना मिरी तुम आ के संदल के
ताबाँ अब्दुल हई
ग़ज़ल
मज़े में दर्द-ए-सर के कब से मोहताज-ए-दवा 'उज़लत'
'अबस ऐ संदली-रंगो हुए हो सरगिराँ हम से
वली उज़लत
ग़ज़ल
संदल जैसी रंगत पर क़ुर्बान सुनहरी धूप करूँ
रौशन माथे पर मैं वारूँ सारा हुस्न ख़ुदाई का
इरफ़ाना अज़ीज़
ग़ज़ल
मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर
पहाड़ों पर चमकती बिजलियाँ निकलीं उधर चल कर
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
सुब्ह नहाने जूड़ा खोले नाग बदन से आ लिपटें
उस की रंगत उस की ख़ुश्बू कितनी मिलती संदल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
ये निगह ये मुँह ये रंगत ये मिसी ये लाल-ए-ख़ंदाँ
ग़ज़ब और तिस पे लेना ये ज़बाँ ब-ज़ेर-ए-दंदाँ