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ग़ज़ल
वो जब संजीदा होते हैं अदा अंगड़ाई लेती है
वो जब ख़ामोश होते हैं जवानी गुनगुनाती है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
मिरे अश'आर आफ़ाक़ी मिरी ग़ज़लें हों पैग़ामी
हो मेरी फ़िक्र संजीदा क़लम आज़ाद हो मेरा
मुबारक लोन
ग़ज़ल
चाँद भी खोया खोया सा है तारे भी ख़्वाबीदा हैं
आज फ़ज़ा के बोझल-पन से लहजे भी संजीदा हैं
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
गुफ़्तुगू करनी है संजीदा 'शफ़क़' से आप को
शेर कहिए और ठहाके भी लगाते जाइए