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ग़ज़ल
ये हँसता हुआ शोर संजीदगी के लिए इम्तिहाँ है
सो मोहतात रहना कि तहज़ीब-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ खो न जाए
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
तभी तो 'शाद' मैं हूँ मो'तबर अपनी निगाहों में
मनाज़िर को बड़ी संजीदगी से सोचता हूँ मैं