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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ये रोग नहीं ये जोग नहीं संजोग की हैं सारी बातें
सब लोग न जाने क्यों तुझ को इक प्रेम-दीवानी कहते हैं
नसीम ज़ैदी त्रिशूल
ग़ज़ल
औराक़ सजन संजोग कथा इदराक स्वयंवर सखियाँ
कविराज तुम अपनी कविता का बन-बास रखो सरनामा
नासिर शहज़ाद
ग़ज़ल
बिर्हा और संजोग कथा हैं माया-जाल की चंचलता हैं
वर्ना प्रेमी मन बंधन में इक दूजे से कब छोटे हैं