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ग़ज़ल
हमेशा बीज बोता है जो नफ़रत के ज़माने में
उसे 'संतोष' जीवन में कभी हासिल नहीं होता
संतोष खिरवड़कर
ग़ज़ल
काट कर कुछ पेड़ सब को घर बनाने की पड़ी है
यार किस को पंछियों के आशियाने की पड़ी है