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ग़ज़ल
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
रंग-ए-सपेद-ओ-सियाह सुनहरी सब शक्लों में ज़ाहिर हों
आग से अपनी राख उठा कर सोना चाँदी जस्त रहें
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
याद दिला दी है सूरज के आस-पास इक बदली ने
काली क़मीसों के साए में धूप सपेद ग़रारों की
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
ये भभूत किस की पलकों किस के बालों की परछाईं है
तेरे साफ़ सपेद जिस्म पर किस ने रंग बिखेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
फ़िरऔ'नों के घर ही उन के ज़हरों के तिरयाक़ पले हैं
रातों की आग़ोश ही पाले ऐ दिल सुर्ख़ सपेद उजाले
शरीफ़ कुंजाही
ग़ज़ल
गुहर न समझो इन अश्कों को हैं ये ला'ल-ए-सपेद
दिखा रही है ये ए'जाज़ चश्म-ए-तर अपना