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ग़ज़ल
हुकूमत है न शौकत है न इज़्ज़त है न दौलत है
हमारे पास अब ले-दे के बाक़ी बस सक़ाफ़त है
ख़्वाजा रब्बानी
ग़ज़ल
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
मुनीर जाफ़री
ग़ज़ल
महल मिस्मार हो कर भी सक़ाफ़त ज़िंदा रखते हैं
जबीं-ए-संग पर हम ने यही तहरीर देखी है
नौशाद मुनीस आज़मी
ग़ज़ल
हुकूमत है न शौकत है न 'इज़्ज़त है न दौलत है
हमारे पास अब ले दे के बाक़ी बस सक़ाफ़त है
ख़्वाजा ग़ुलामुस्सय्यदैन रब्बानी
ग़ज़ल
सब जंगल काट दिए लेकिन ज़ेहनों से वो वहशी-पन न गया
आबाद हैं शहरों में लेकिन तहज़ीब-ओ-सक़ाफ़त भूल गए
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने
मु'अज़्ज़िज़ हो गए हम भी शराफ़त छोड़ दी हम ने