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ग़ज़ल
तुफ़ ब-मा'शूक़-मिज़ाजाँ सर-ए-हर-यार पे ख़ाक
ढल गए होश तो अब ख़ामा-ए-बेदार पे ख़ाक
अब्दुल्लाह साक़िब
ग़ज़ल
दर्द ऐसा है कि हर मू-ए-बदन काँपता है
आह भरता हूँ तो आहू-ए-ख़ुतन काँपता है
मुज़फ्फ़र अहमद मुज़फ्फ़र
ग़ज़ल
करूँ तौबा जो हो पैदा बुन-ए-हर-मू से ज़बाँ
जितने हैं मू-ए-बदन उतनी ही तक़्सीरें हैं
इमदाद अली बहर
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ये दिल वालों को ता'लीम-ए-सुजूद पा-ए-जानाँ है
सर-ए-हर-मौज को बरपा-ए-साहिल देखने वाले
एहसान दानिश
ग़ज़ल
नहीं तो बर-सर-ए-हर-मुद्दआ' है सौ सौ बार
पर इक ज़बान जो हिलती नहीं सो हाँ कै लिए
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
हर ज़र्रा चश्म-ए-शौक़-ए-सर-ए-रहगुज़र है आज
दिल महव-ए-इंतिज़ार है और किस क़दर है आज
हमीद नागपुरी
ग़ज़ल
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर 'अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
पहले अपना सर क़लम करवाए फिर तय्यार हो
हर किसी का काम है जो लिख सके तफ़्सीर-ए-इश्क़