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ग़ज़ल
गँवा चुका है तू साक़ी-ए-हौज़-ए-कौसर को
कि तेरे ज़र्फ़ में अब तक शराब-ए-नाब नहीं
नक़्क़ाश अली बलूच
ग़ज़ल
यही है ज़ोहद का आलम तो फिर ऐ हज़रत-ए-नासेह
शराब-ए-हौज़-ए-कौसर का छलकता जाम क्या होगा
कशफ़ी लखनवी
ग़ज़ल
मदहत-ए-साक़ी-ए-कौसर तुझ को लिखनी है 'क़लक़'
पहले आब-ए-हौज़-ए-कौसर से नहाना चाहिए
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तू भी हरे दरीचे वाली आ जा बर-सर-ए-बाम है चाँद
हर कोई जग में ख़ुद सा ढूँडे तुझ बिन बसे आराम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
उस की आवारगी को दु'आएँ दो ऐ साहिबान-ए-जुनूँ
जिस के नक़्श-ए-क़दम ने बिछाए सर-ए-रहगुज़र आइने
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ