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ग़ज़ल
गुलशन का सना-ख़्वाँ हूँ बयाबाँ में पड़ा हूँ
ताइर हूँ मगर गोशा-ए-ज़िंदाँ में पड़ा हूँ
अर्श सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
नक़्श सारे ख़ाक के हैं सब हुनर मिट्टी का है
इस दयार-ए-रंग-ओ-बू में बस्त-ओ-दर मिट्टी का है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
मुसहफ़-ए-रुख़ का तुम्हारे जो सना-ख़्वाँ होता
दिल-ए-बेताब मिरा हाफ़िज़-ए-क़ुर्आं होता
हाशिम अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ
ये है वो जुर्म जो मुझ से किसी उनवाँ न हुआ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
क्या ग़म जो फ़लक से कोई उतरा न सर-ए-ख़ाक
जुज़ ख़ाक नहीं कोई यहाँ चारा-गर-ए-ख़ाक
मुज़फ्फर अली सय्यद
ग़ज़ल
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
मैं तेग़-ए-तेज़ था लेकिन मुझे ज़वाल आया