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ग़ज़ल
मुनाफ़िक़ों को सराहता हूँ मुनाफ़िक़त से
शरीफ़ शाइ'र भी अब कमीनों से जा मिला है
मन्नान क़दीर मन्नान
ग़ज़ल
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं