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ग़ज़ल
एक मद्धम आँच सी आवाज़ सरगम से अलग कुछ
रंग इक दबता हुआ सा पूरे मंज़र में अकेला
राजेन्द्र मनचंदा बानी
ग़ज़ल
साँसों की टूटी सरगम में इक मीठा स्वर याद रहा
यूँ तो सब कुछ भूल गया मैं पर तेरा घर याद रहा
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
बे-ताल है कैसी ये सरगम बे-लहरा पंजम है मद्धम
जो राग है दीपक इस मन में उस राग को कैसे गा जाएँ
सालिक लखनवी
ग़ज़ल
मैं उसे अपने जिगर में धड़कनों सा रखता हूँ
साँस में सरगम सा मुझ को वो बसाता क्यों नहीं
अनंत शहरग
ग़ज़ल
चले आओ कि दिल की धड़कनों में नग़्मगी भर दें
तुम्हारा साज़ तन्हा है मिरे सरगम अकेले हैं
आइशा मसरूर
ग़ज़ल
सजा कर चाँद का गजरा ये पगली रात आती है
बिखरती साँस की सरगम सुनो ख़ामोश क्यों हो तुम
मधूरिमा सिंह
ग़ज़ल
तुम्हारे हिज्र की रातों में जब तन्हाई डसती है
बजा कर अपनी हम साँसों की सरगम रक़्स करते हैं
निर्मल नदीम
ग़ज़ल
हमें न सरगम न राग आए हमारी आवाज़ किस को भाए
हमारे शे'रों में तल्ख़ियाँ हैं ज़माना मीठी सदाएँ माँगे
नसीम निकहत
ग़ज़ल
हो दिन की फ़ज़ाओं का सरगम या भीगती रातों का आलम
कितना ही सुहाना हो मौसम दिलदार नहीं तो कुछ भी नहीं