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ग़ज़ल
मुझ में कोई मुझ जैसा हो ऐसा भी हो सकता है
या फिर कोई और छुपा हो ऐसा भी हो सकता है
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
मैं ख़ुद अपनी ग़ज़लें अक्सर पढ़ता हूँ हैरानी से
कैसे पेचीदा बातें कह लेता हूँ आसानी से
सय्यद सरोश आसिफ़
ग़ज़ल
शाइ'र-ए-बज़्म-ए-अक़्ल-ओ-होश हाँ कोई और नग़्मा-सरोश
दिल की सदा है क्यूँ ख़मोश दिल की सदा को क्या हुआ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
क्या बनेगा मिरे शानों के फ़रिश्तों का 'सरोश'
मैं तो मर जाऊँगा ये दोनों किधर जाएँगे