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ग़ज़ल
तबीब आरवी
ग़ज़ल
ऐ निगाह-ए-दोस्त ये क्या हो गया क्या कर दिया
पहले पहले रौशनी दी फिर अंधेरा कर दिया
माहिर-उल क़ादरी
ग़ज़ल
अब्दुल अलीम आसि
ग़ज़ल
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
सब कुछ निसार-ए-राह-ए-वफ़ा कर चुके हैं हम