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ग़ज़ल
या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
है चोब-ए-ख़ुश्क जिस बिन मेरी नज़र में तूबा
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
ख़त्म हैं इस शोख़ रा'ना पर तरह-दारी के रंग
कद्द-ए-बाला जिस का है रश्क-ए-क़ज़ीब-ए-ख़ैज़राँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
तूबा-ए-बहिश्ती है तुम्हारा क़द-ए-रा'ना
हम क्यूँकर कहें सर्व-ए-इरम कह नहीं सकते
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
ज़मीं में गड़ गए देख उस क़द-ए-रा'ना को ख़जलत से
लब-ए-जू पर अकड़ते थे खड़े क्या सर्व लह लह कर