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ग़ज़ल
दूल्हा ख़ुद भी लूट रहा है मिस्री बादाम और खजूर
ससुरे को भी मारे धक्का ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
जेब में कौड़ी नहीं घर में नहीं दाने का नाम
साले ससुरे हैं कि लेते ही नहीं जाने का नाम
नावक लखनवी
ग़ज़ल
हिरा-ओ-सौर से होती हुई ये ला-मकाँ पहुँची
तुम अब भी पूछते हो क्या वफ़ा रस्ता बनाती है