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ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कोई इक आध सपना हो तो फिर अच्छा भी लगता है
हज़ारों ख़्वाब आँखों में सजा कर कुछ नहीं मिलता
वसी शाह
ग़ज़ल
पूछा सता के रंज क्यूँ बोले कि पछताना पड़ा
पूछा कि रुस्वा कौन है बोले दिल-आज़ारी मिरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
दिल ही थे हम दुखे हुए तुम ने दुखा लिया तो क्या
तुम भी तो बे-अमाँ हुए हम को सता लिया तो क्या