aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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यहाँ से डूब कर जाना है मुझ कोसमुंदर में उतर जाना है मुझ को
तेरे मिलने से हम को ख़ुशी मिल गईयूँ लगा इक नई ज़िंदगी मिल गई
दिल ने किया है क़स्द-ए-सफ़र घर समेट लोजाना है इस दयार से मंज़र समेट लो
जब सितारे सफ़र के देखेंगेपहले आँखों में डर के देखेंगे
साँझ सवेरे पंछी गाएँ ले कर तेरा नामडाली डाली पर है तेरी यादों के बिसराम
बे-यक़ीनी का हर इक सम्त असर जागता हैऐसी वहशत है कि दीवार में दर जागता है
तुम को जीवन में ख़सारा भी तो हो सकता हैजो तुम्हारा है हमारा भी तो हो सकता है
वो जो थे दर-ब-दर चुने हम नेअपने जैसे ही घर चुने हम ने
आसमाँ सूरज सितारे बहर-ओ-बर किस के लिएये सफ़र किस के लिए रख़्त-ए-सफ़र किस के लिए
हर ख़्वाब समुंदर भी है सहरा भी है घर भीहर लम्हा-ए-ता'बीर से है प्यार भी डर भी
सहरा में कोई साया-ए-दीवार तो देखोऐ हम-सफ़रो धूप के उस पार तो देखो
शाम तन्हाई धुआँ उठता बराबर देखतेफिर सर-ए-शब चाँद उभरने का भी मंज़र देखते
सूने ही रहे हिज्र के सहरा उसे कहनासूखे न कभी प्यार के दरिया उसे कहना
गहरी है शब की आँच कि ज़ंजीर-ए-दर कटेतारीकियाँ बढ़े तो सहर का सफ़र कटे
मेरे इदराक में सोचों का गुज़र रहता हैजिस तरह दहर में लम्हों का सफ़र रहता है
जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझेउदास नाम खुला दर पुकारता है मुझे
झोंका नफ़स का मौजा-ए-सरसर लगा मुझेरात आ गई तो ख़ुद से बड़ा डर लगा मुझे
हिज्र का क़िस्सा बहुत लम्बा नहीं बस रात भर हैएक सन्नाटा मगर छाया हुआ एहसास पर है
हर घड़ी हर लम्हा उठते पत्थरों के साथ मैंटूटे टूटे कितने शीशों के घरों के साथ मैं
हाथ मेरे हैं बंधे हाथ मिलाऊँ कैसेपास हो कर भी तेरे पास मैं आऊँ कैसे
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