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ग़ज़ल
सौंपूँ मैं क्यूँ न अपना गरेबाँ अजल के हात
ऐ 'उम्र ज़िंदगी से मैं दामन-कशीदा हूँ
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों को
मिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
ग़ाफ़िलों को क्या सुनाऊँ दास्तान-ए-इश्क़-ए-यार
सुनने वाले मिलते हैं दर्द-आश्ना मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब'
वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है
तिरी इक निगाह की बात है मिरी ज़िंदगी का सवाल है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
ओ वफ़ा-ना-आश्ना कब तक सुनूँ तेरा गिला
बे-वफ़ा कहते हैं तुझ को और शरमाता हूँ मैं