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ग़ज़ल
वो हाथ मेरे जिन्हों ने तलवार सौंत ली थी
जो ख़ाक ओ ख़ूँ में लुथड़ गया था वो सर था मेरा
सिराज मुनीर
ग़ज़ल
वो अपना जिस्म सारा सौंप देना मेरी आँखों को
मिरी पढ़ने की कोशिश आप का अख़बार हो जाना
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
ये मेरा जिस्म मेरी रूह उस को सौंप दी मैं ने
कोई तो है मिरे अंदर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
ख़ून ने तेरी यादें सुलगती हुई रात को सौंप दीं
आँसुओं ने तिरा दर्द रूखी हवा के हवाले किया
फ़रहत अब्बास शाह
ग़ज़ल
है बुल-अजब ये ज़मज़मा-ए-सौत-ए-सरमदी
किस तरह आए मा'रिज़-ए-गुफ़्त-ओ-शुनूद में