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ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-ख़्वाब देर तक खड़ा रहा सवेर तक
नशेब-ए-क़ल्ब-ओ-चश्म से गुज़र तिरा हुआ नहीं
हम्माद नियाज़ी
ग़ज़ल
वक़्त ले आया है ख़ुद हद में उसे देर सवेर
जिस ने भी क़द से सिवा अपनी अना रक्खी है
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
सुब्ह की राख का हूँ ढेर और हूँ रौशनी की रात
था भी तो जिस्म की सवेर हूँ भी तो जिस्म ही की रात
शाहीन अब्बास
ग़ज़ल
काजल काजल बहते गए थे सुर्ख़ सवेर के डोरे में
आँख में कुछ ख़्वाबों के चेहरे ग़ाज़ा-ग़ाज़ा रोए थे