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ग़ज़ल
सेठ साहब गिन रहे थे घर में पगड़ी के रूपे
सूँघते जाने कहाँ से थाने वाले आ गए
शाम लाल रोशन देहलवी
ग़ज़ल
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ