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ग़ज़ल
ऐ दोस्त जुदाई में तेरी कुछ ऐसे भी लम्हे आते हैं
सेजों पे भी तड़पा करता हूँ काँटों पे भी राहत होती है
सबा अफ़ग़ानी
ग़ज़ल
झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल
शक्लें देख के सौदे करना काम है इन बंजारों का
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शमीम करहानी
ग़ज़ल
हबीब जालिब
ग़ज़ल
रेत में मुँह डाल कर साँसों का उस का रोकना
चंद सिक्कों के लिए बच्चा बड़ा जाँबाज़ है
मुश्ताक़ अंजुम
ग़ज़ल
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
यही सौदा-गरान-ए-फ़न से कहना है 'ज़फ़र' मुझ को
ग़ज़ल को चंद सिक्कों के एवज़ बेचा नहीं जाता
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ग़ज़ल
अद्ल बिकता है जहाँ सिक्कों की झंकारों में
मुस्तहब उन पे नज़र आता है ला'नत लिखना