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ग़ज़ल
ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी
सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
वो आँखें सामरी-फ़न हैं वो लब ईसा-नफ़स देखो
मुझी पर सेहर होते हैं मुझी पर दम भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
मुद्दई बस्ता-ज़बाँ क्यूँ न हो सुन कर मिरे शेर
क्या चले सेहर की जब साहिब-ए-एजाज़ आया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
इन मध-भरी आँखों में क्या सेहर 'तबस्सुम' था
नज़रों में मोहब्बत की दुनिया ही सिमट आई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मुज़्दा कि ना-मुराद-ए-इश्क़ तेरी ग़ज़ल का है वो रंग
वो भी पुकार उठे कि ये सेहर है शाइरी नहीं
एहसान दानिश
ग़ज़ल
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
कीजिए सेहर-बयानी से मुसख़्ख़र क्यूँ-कर
कभी सुनता नहीं 'नासिख़' वो हमारी बातें