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ग़ज़ल
सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक़ दिल की वही तन्हाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
हैं 'शाद' ओ 'सफ़ी' शाइर या 'शौक़' ओ 'वफ़ा' 'हसरत'
फिर 'ज़ामिन' ओ 'महशर' हैं 'इक़बाल' भी 'वहशत' भी
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
ये क्या कि इक जहाँ को करो वक़्फ़-ए-इज़्तिराब
ये क्या कि एक दिल को शकेबा न कर सको
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
ता-साफ़ करे दिल न मय-ए-साफ़ से सूफ़ी
कुछ सूद-ओ-सफ़ा इल्म-ए-तसव्वुफ़ नहीं करता
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई
दो रोज़ की महफ़िल है इक 'उम्र की तन्हाई
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
वो मुझ से हुए हम-कलाम अल्लाह अल्लाह
कहाँ मैं कहाँ ये मक़ाम अल्लाह अल्लाह