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ग़ज़ल
मर गया रात को बर्फ़ ओढ़े हुए एक फ़ुटपाथ पर
वो जो कहता रहा लफ़्ज़ वो उम्र-भर शांति फ़ाख़्ता
दानियाल तरीर
ग़ज़ल
बेज़ार फिर न होंगे कभी ज़िंदगी से हम
हो लें तिरे क़रीब जो ख़ुश-क़िस्मती से हम
शांति लाल मल्होत्रा
ग़ज़ल
किसी के लब पे भोले-पन से मेरा नाम है शायद
मिरी बेचारगी से फिर किसी को काम है शायद
शांति लाल मल्होत्रा
ग़ज़ल
कहानी मेरी बर्बादी की जिस ने भी सुनी होगी
नज़र में उस के इक तस्वीर-ए-हैरत खिंच गई होगी
शांति लाल मल्होत्रा
ग़ज़ल
दिल को नसीब सोज़-ए-ग़म-ए-गुलसिताँ कहाँ
होता तो आज होता ये दर्द-ए-निहाँ कहाँ