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ग़ज़ल
अदब ता'लीम का जौहर है ज़ेवर है जवानी का
वही शागिर्द हैं जो ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
मैं वो हूँ जिस का ज़माने ने सबक़ याद किया
ग़म ने शागिर्द किया फिर मुझे उस्ताद किया
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
ज़रा ये सीख लेते दिल के ले लेने का ढब क्या है
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शागिर्द तर्ज़-ए-ख़ंदा-ज़नी में है गुल तिरा
उस्ताद-ए-अंदलीब हैं सोज़-ओ-फ़ुग़ाँ में हम
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
है ये इंसाँ बड़े उस्ताद का शागिर्द-ए-रशीद
कर सके कौन अगर ये भी ख़िलाफ़त न करे
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
वही शागिर्द फिर हो जाते हैं उस्ताद ऐ 'जौहर'
जो अपने जान ओ दिल से ख़िदमत-ए-उस्ताद करते हैं
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
जुनूँ के इल्म को आलिम हूँ मेरा रुत्बा मत पूछो
कि मजनूँ दर्स-ए-वहशत का मिरे शागिर्द है पहला
फ़त्तावत औरंगाबादी
ग़ज़ल
ऐ 'शाद' अबस है उस का गिला वो हज्व करे या तुझ से फिरे
ता-हश्र रहा शागिर्द तिरा उस्ताद तुझे जब मान लिया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
पढ़ें धड़ल्ले से शागिर्द भी मेरी ग़ज़लें
मैं खोटा सिक्का चलाऊँ किसी के बाप का क्या