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ग़ज़ल
वो मुखड़ा गुल सा और उस पर जो नारंजी दो-शाला है
रुख़-ए-ख़ुर्शीद ने गोया शफ़क़ से सर निकाला है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़ख़्मों का दो-शाला पहना धूप को सर पर तान लिया
क्या क्या हम ने कष्ट कमाए कहाँ कहाँ निरवान लिया
ऐतबार साजिद
ग़ज़ल
दौलत-ए-फ़क़्र हो ऐ मुनइ'मो और कमली हो
फ़ख़्र क्या है जो दो-शाला हुआ रूमाल हुआ
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
आँखों के जज़ीरे में ख़्वाबों के घरौंदे हैं
और ख़्वाबों के कंधों पर आशा का दो-शाला है
तबस्सुम आज़मी
ग़ज़ल
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो