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ग़ज़ल
जो शब्द उड़ानें भरते थे आज़ाद फ़ज़ा-ए-मअ'नी में
यूँ शेर की बंदिश में सिमटे गोया पिंजरों के तोते थे
अब्दुल अहद साज़
ग़ज़ल
जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार
कौन उतरेगा दिल के अंधे भाओं के मतलब तक यार