aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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ग़लत-बयानियों के अहद-ए-नौ में 'शाद' आरफ़ीमिरा कमाल-ए-फ़न ये है कि सिर्फ़ माजरा हुआ
ख़ुदा-ए-कार-साज़ के करम से 'शाद'-आरफ़ीकभी मुझे सलीक़ा-ए-सवाल ही नहीं रहा
मुस्तक़बिल रौशन-तर कहिएलेकिन आँख मिला कर कहिए
कहता है बाग़बान लिहाज़ा न चाहिएवर्ना चमन का हाल छुपाना न चाहिए
कौन बुतों से रिश्ता जोड़ेनाम बड़े और दर्शन थोड़े
अपने जी में जो ठान लेंगे आपया हमारा बयान लेंगे आप
ला ऐ साक़ी तेरी जय होकोई भी पीने की शय हो
कभी तलाश न ज़ाए न राएगाँ होगीअगर हुई भी तो अज़-राह-ए-इम्तिहाँ होगी
चाहते हैं घर बुतों के दिल में हमहैं जुनूँ की आख़िरी मंज़िल में हम
इंतिज़ार था हम को ख़ुशनुमा बहारों काये क़ुसूर क्या कम है हम क़ुसूर-वारों का
उठ गई उस की नज़र मैं जो मुक़ाबिल से उठावर्ना उठने के लिए ग़ैर भी महफ़िल से उठा
क़दम सँभल के बढ़ाओ कि रौशनी कम हैअगर ये भूल न जाओ कि रौशनी कम है
चमन को आग लगाने की बात करता हूँसमझ सको तो ठिकाने की बात करता हूँ
तारे जो आसमाँ से गिरे ख़ाक हो गएज़र्रे उठे तो बर्क़-ए-ग़ज़ब-नाक हो गए
अपनी तक़दीर को पीटे जो परेशाँ है कोईआप के बस में इलाज-ए-ग़म-ए-दौराँ है कोई
अहद-ए-मायूसी जहाँ तक साज़गार आता गयाअपने-आपे में दिल-ए-बे-इख़्तियार आता गया
बदली ऐसी ज़ुल्फ़ की लट में शामिल कर के उलझन कोईमेरी ख़ातिर बाल सुखाने नाप रहा है आँगन कोई
वक़्त क्या शय है पता आप ही चल जाएगाहाथ फूलों पे भी रख्खोगे तो जल जाएगा
सितम-गर को मैं चारा-गर कह रहा हूँग़लत कह रहा हूँ मगर कह रहा हूँ
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