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ग़ज़ल
वो कम-सिनी की शफ़ीक़ यादें गुलाब बन कर महक उठी हैं
उदास शब की ख़मोशियों में ये कौन लोरी सुना रहा है
इक़बाल अशहर
ग़ज़ल
तुझे क्या बताऊँ मैं हम-नशीं मिरी ज़िंदगी का जो हाल है
न मसर्रतों की कोई ख़ुशी न ग़मों का कोई मलाल है
शफ़ीक़ बरेलवी
ग़ज़ल
'शफ़ीक़' आसार हैं मशरिक़ की जानिब ताज़ा किरनों के
ये मेरी शाम-ए-नौ की चाँदनी मालूम होती है