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ग़ज़ल
ग़म तिरा जल्वा-गह-ए-कौन-ओ-मकाँ है कि जो था
या'नी इंसान वही शो'ला-ब-जाँ है कि जो था
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
लम्हा लम्हा वुसअत-ए-कौन-ओ-मकाँ की सैर की
आ गया सो ख़ूब मैं ने ख़ाक-दाँ की सैर की
दिलावर अली आज़र
ग़ज़ल
इस से पहले कि ग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ को समझो
हो सके गर तो मिरे ग़म की ज़बाँ को समझो
ख़ुर्शीदुल इस्लाम
ग़ज़ल
मताअ'-ए-कौन-ओ-मकाँ तुम नहीं तो कुछ भी नहीं
ग़रज़ ये सारा जहाँ तुम नहीं तो कुछ भी नहीं
बेताब अमरोहवी
ग़ज़ल
तलाश-ए-कौन-ओ-मकाँ है न ला-मकाँ की तलाश
ये ज़िंदगी है ग़म-ए-इश्क़-ए-जावेदाँ की तलाश
मसूद अख़्तर जमाल
ग़ज़ल
मेरा मक़ाम सरहद-ए-कौन-ओ-मकाँ से दूर
मंज़िल मिरी ज़मीं से परे आसमाँ से दूर