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ग़ज़ल
हैं कहाँ तेरी वो चालाकियाँ ऐ दस्त-ए-जुनूँ
जेब 'अफ़सोस' का सद-हैफ़ गुलू-गीर रहे
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
अफ़्सोस मिरी जान भी क्या खोवेगा अब ये
रुस्वा तो किया इस दिल-ए-नाशाद ने मुझ को
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
शहर-ए-अफ़सोस में अपने हैं न बेगाने हैं
अब दिल ओ जाँ के भी रिश्ते हैं मन-ओ-तू की तरह
तनवीर अहमद अल्वी
ग़ज़ल
हम से जिस के तौर हों बाबा देखोगे दो एक ही और
कहने को तो शहर-ए-कराची बस्ती दिल-ज़दगाँ की है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच