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ग़ज़ल
उमैर नजमी
ग़ज़ल
शहज़ादे तलवार थमा दे अब दरबान के हाथों में
कह दे ख़ाली हाथ न जाए अब के बार सवाली का
मुमताज़ गुर्मानी
ग़ज़ल
कोमल जोया
ग़ज़ल
क्यों न हर इक जानिब अब शहज़ादे की सूरत हो
हम ने उस को नक़्श किया है आँखों के उस पार
फ़ौज़िया रबाब
ग़ज़ल
शाहनवाज़ अंसारी
ग़ज़ल
तुझे भी इस कहानी में कहीं खोना है शहज़ादे
ख़ुदा हाफ़िज़ ये मोहर-ए-ख़ानदानी पुश्त पर रखना