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ग़ज़ल
हम ख़राबात-नशीनों का वो आली है मक़ाम
कि जो कम-ज़र्फ़ रहे तख़्त-ओ-नगीं तक पहुँचे
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
मीना नक़वी
ग़ज़ल
जुनूँ की फ़ितरत-ए-आली पे बार है ऐ दोस्त
वो बंदगी जो मक़ाम-ए-सवाल से गुज़रे