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ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
बद-गुमानी जब न थी तू भी नहीं था मो'तरिज़
मैं भी तेरी शख़्सियत पर नुक्ता-चीं ऐसी न थी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
हमारी ख़्वाहिश-ए-बे-ख़्वाहिशी जो राख कर दे
हम अपनी शख़्सियत में वो शरारा ढूँडते हैं
अशफ़ाक़ हुसैन
ग़ज़ल
'बासिर' की शख़्सियत भी अजब है कि इस में हैं
कुछ ख़ूबियाँ ख़राब कुछ अच्छी ख़राबियाँ
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
क्या किसी बदलाव से ये ज़िंदगी बदली कभी
क्यूँ नई वो रोज़ अपनी शख़्सिय्यत करता रहा
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
वक़ार-ए-शख़्सियत में फ़र्क़ तो पड़ता नहीं लेकिन
असर-अंदाज़ होता है हमारा देखना तुझ को