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ग़ज़ल
'शम्अ'' इतना तो कभी उस की समझ में आए
डूबती कश्ती का साहिल से तक़ाज़ा क्या है
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
वो शख़्स आया था ऐ 'शम्अ' ले के मौसम-ए-गुल
उसे ख़बर ही न थी दर्द मेरा ज़ेवर था
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
ऐ 'शम्अ'' किस ने दी थी तुझे ऐसी बद-दुआ'
घर में कोई चराग़ न जलता दिखाई दे
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
हुजूम-ए-ग़म सँभलता ही नहीं ऐ 'शम्अ'' अब मुझ से
कभी तो काश ऐसा हो मुझे तन्हा करे कोई
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
ग़ज़ल
बस यही ख़ाकिस्तर-ए-जाँ है यहाँ अपनी शनाख़्त
हो गया सारा बदन जब राख तो चमका हुनर
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
पूछा ख़िताब यार से किस तरह कीजिए शाम-ए-वस्ल
चुपके से अंदलीब ने फूल से कुछ कहा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
ख़ल्लाक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बड़ा दिल-नवाज़ है
तख़्लीक़-ए-शम्अ' होते ही परवाना बन गया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
ऐ 'नादिर' उन के हुस्न की तारीफ़ क्या लिखूँ
शम-ए-लगन से बढ़ के हैं पुर-नूर पिंडलियाँ
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
मैं शम्अ-ए-बज़्म-ए-आलम-ए-इम्काँ किया गया
इंसानियत को देख के इंसाँ किया गया
मिर्ज़ा अल्ताफ़ हुसैन आलिम लखनवी
ग़ज़ल
कल तक जो शम्अ'-ए-महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-सुरूर था
उलझा वो आज गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार में