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ग़ज़ल
जब शाम हुई दिल घबराया लोग उठ के बराए सैर चले
तफ़तीश-ए-सनम को सू-ए-हरम हम जान के दिल में दैर चले
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम
पहुँचे थे रात शम्अ के हो कर बरन में हम
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
तुझ बेवफ़ा की आह कोई चाह क्या करे
दिल तुझ को दे के तू ही बता आह क्या करे
मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार
ग़ज़ल
अज़हर कमाल ख़ान
ग़ज़ल
बादा-ए-वहशत-असर से मस्त वीराने में था
एक आलम बे-ख़ुदी का तेरे दीवाने में था
प्यारे लाल रौनक़ देहलवी
ग़ज़ल
देखा करो न तुम निगह-ए-सेह्र-फ़न के साथ
अच्छी नहीं ये छेड़ दिल-ए-पुर-मेहन के साथ
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
पता मिलता नहीं दिल का कहाँ जिंस-ए-गिराँ रख दी
इसी से ज़िंदगानी थी ये शय हम ने कहाँ रख दी
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
बुतों का ज़िक्र करो वाइज़ ख़ुदा को किस ने देखा है
शरार-ए-संग-ए-मूसा के लिए बर्क़-ए-तजल्ला है
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के
कि उस की पुतलियों से आ रहा है नूर छन छन के
रंजूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
क्यूँकर न ख़ुश हो सर मिरा लटक्का के दार में
क्या फल लगा है नख़्ल-ए-तमन्ना-ए-यार में