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ग़ज़ल
हाँ मिरा शौक़-लक़ा तेरी इनायत ही सही
क्या मिला मुझ को मगर इज्ज़-ए-बयाँ से आगे
अब्दुल मन्नान तरज़ी
ग़ज़ल
पहलू को तिरे इश्क़ में वीराँ नहीं देखा
इस दिल को कभी ख़ाली-अज़-अरमाँ नहीं देखा
जमीला ख़ुदा बख़्श
ग़ज़ल
शौक़-ए-लिक़ा-ए-रू-ए-यार चश्म-बराह-ए-इंतिज़ार
आह-ए-सहर से जा मिला दीदा-ए-अश्क-बार-ए-शब
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
चश्मक-ज़नी में करती नहीं यार का लिहाज़
नर्गिस की आँख में भी नहीं है ज़रा लिहाज़
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
जों हिलाल आप से यकसर मैं हुआ हूँ ख़ाली
तुझ से ऐ मेहर-लक़ा शौक़-ए-हम-आग़ोशी है