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ग़ज़ल
दिल अगर दिल है तो हर हाल में रुस्वा होगा
जब ग़म-ए-इश्क़ न होगा ग़म-ए-दुनिया होगा
शाहिद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मयख़ाने पे छाई है अफ़्सुर्दा-शबी कब से
साग़र से गुरेज़ाँ है ख़ुद तिश्ना-लबी कब से
अरशद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हम उन से टूट कर मिलते हैं मिल कर टूट जाते हैं
तमाशा है कि शीशे से भी पत्थर टूट जाते हैं
अनवर सादिक़ी
ग़ज़ल
हबीबुर्रहमान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
रक्खे हर इक क़दम पे जो मुश्किल की आगही
मिलती है उस को राह से मंज़िल की आगही
सबीला इनाम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ
जब भी दिल पर चमक उठ्ठे तिरे क़दमों के निशाँ
सादिक़ नसीम
ग़ज़ल
तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से कि इस में आग दबी है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं
ये क्या हुआ कि मिरे लब पे इल्तिजा भी नहीं