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ग़ज़ल
आग़ाज़ हुआ है उल्फ़त का अब देखिए क्या क्या होना है
या सारी उम्र की राहत है या सारी उम्र का रोना है
हामिदुल्लाह अफ़सर
ग़ज़ल
इसी में ज़ात का इदराक इर्तिक़ा का शुऊ'र
मिरी नज़र में मोहब्बत है इंतिहा का शुऊ'र
मोहम्मद शाहिद फ़ीरोज़
ग़ज़ल
चाँद सितारे फूल परिंदे शाम सवेरा एक तरफ़
सारी दुनिया उस का चर्बा उस का चेहरा एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
टूटा जो वो तो शाम-ए-शफ़क़-ज़ाद ख़त्म थी
साँसों में फूल खिलने की मीआ'द ख़त्म थी