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ग़ज़ल
क्या 'अजब फ़र्त-ए-ख़ुशी से है जो गिर्यां आदमी
कसरत-ए-ग़म में नज़र आता है ख़ंदाँ आदमी
जुनैद हज़ीं लारी
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का अजब मौसम था 'शाद'
शमशाद शाद
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का 'अजब मौसम था 'शाद'
शमशाद शाद
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-ग़म-ओ-अलम से जब दिल हुआ है गिर्यां
उस ने इनायतों के दरिया बहा दिए हैं
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
गुल भी ख़ुश-तलअ'त है पर ऐ माह तू कुछ और है
बास उस में और कुछ है तुझ में बू कुछ और है
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
दिल तंग उस में रंज-ओ-अलम शोर-ओ-शर हों जम्अ'
चैन आए ख़ाक घर में जब इतने ज़रर हों जम्अ'