आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "sher ul ajam volume 004 ebooks"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "sher ul ajam volume 004 ebooks"
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का अजब मौसम था 'शाद'
शमशाद शाद
ग़ज़ल
शोर-ओ-ग़ुल आहें कराहें और अलम पैहम था 'शाद'
रात मेरे दिल की बस्ती का 'अजब मौसम था 'शाद'
शमशाद शाद
ग़ज़ल
दिल तंग उस में रंज-ओ-अलम शोर-ओ-शर हों जम्अ'
चैन आए ख़ाक घर में जब इतने ज़रर हों जम्अ'
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी
ग़ज़ल
गूँजती है ख़ामुशी हर-दम जो मेरे चार-सू
दर-हक़ीक़त शोर-ए-आलम के सिवा कुछ भी नहीं
चन्द्रभान ख़याल
ग़ज़ल
शे'र क्यों कहते हो 'आज़म' ये सुख़न किस के लिए
अब ग़ज़ल मक़्बूल है जो शा'इरी से बच गई।
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
ये शोर-ओ-शर तो पहले दिन से आदम-ज़ाद में है
ख़राबी कुछ न कुछ तो इस की ख़ाक ओ बाद में है
ज़ुल्फ़ेक़ार अहमद ताबिश
ग़ज़ल
जो ज़िंदगी थी हलाक-ए-फ़ुसून-ए-रस्म-ए-कुहन
सँवर रही है ब-फ़ैज़-ए-शुऊ'र-ए-आदम-ए-नौ