aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "sher-goyo.n"
शेर-गोयों की फ़ितरत-ए-सादाला-उबाली नहीं तो क्या होगी
शेर-गोयों को मज़ामीन की तौक़ीरें हैंकहने को एक ज़मीं सैकड़ों जागीरें हैं
साज़-ए-हस्ती पे अगर गाओ तो कुछ बात बनेशे'र बन जाएँ जो ये घाव तो कुछ बात बने
ख़्वाब-आवर गोलियों से ऐ 'शुऊर'ख़ुद-कुशी की कोशिशें करता हूँ मैं
भाई-'शादाब' सुनो शेर-ओ-सुख़न का दफ़्तरसिर्फ़ महबूब के गालों से नहीं चलता है
यहाँ तस्कीन का सावन नहीं हैमोहब्बत दश्त है गुलशन नहीं है
जो मैं नहीं मिरे जैसा बहुत ज़रूरी हैचराग़ एक तो होना बहुत ज़रूरी है
मुंतज़िर है तभी दवाम मिराआगही से भरा है जाम मिरा
ब-रंग-ए-शे'र गिरे और बार बार गिरेहमारे ज़ेहन पे किरनों के आबशार गिरे
ग़मों की धूप कड़ी दोपहर से गुज़रे हैंतमाम उम्र झुलसती डगर से गुज़रे हैं
ग़मों से इस्तिफ़ादा कर रहा हूँमोहब्बत का इआदा कर रहा हूँ
घरों में यूँ उजाला हो गया हैहर इक ज़र्रा शरारा हो गया है
ज़ेहन-ओ-दिल पर ग़मों के साए हैंजो थे अपने वही पराए हैं
चुभेंगे ख़ार तो रस्तों पे चलना छोड़ दोगे क्याकहो मंज़िल को पाने का इरादा छोड़ दोगे क्या
घरों में शोर-ए-मुनाजात बे-सबब तो नहींकहीं वो राहिब-ए-सद-साला जाँ-बलब तो नहीं
नज़र से दूर हक़ीक़त रही कई बरसोंहयात ख़्वाब की सूरत रही कई बरसों
निकले हैं ज़हर कर्ब में बुझ कर तमाम लफ़्ज़घोलें सुबू-ए-शे'र में ग़म की मिठास क्या
मिली भी क्या दर-ए-दौलत से कार-ए-इश्क़ की दादयही कि तेशा-ए-फ़रहाद बर-सर-ए-फ़रहाद
लोग लड़ते रहे नाम आए तलब-गारों मेंहम कि चुप-चाप खड़े थे तिरे बीमारों में
दिन है बे-कैफ़ बे-गुनाहों साना-कुशादा शराब-गाहों सा
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