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ग़ज़ल
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
हाँ हाँ तुझे क्या काम मिरी शिद्दत-ए-ग़म से
हाँ हाँ नहीं मुझ को तिरे दामन की हवा याद
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जिस को भी चाहा उसे शिद्दत से चाहा है 'फ़राज़'
सिलसिला टूटा नहीं है दर्द की ज़ंजीर का
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
कुछ दर्द की शिद्दत है कुछ पास-ए-मोहब्बत है
हम आह तो करते हैं फ़रियाद नहीं करते