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ग़ज़ल
शो'ला-ए-इश्क़ जिगर तक तो भड़क उट्ठा है
कुछ ख़बर भी तुझे ऐ दीदा-ए-तर है कि नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
पड़ी जो शो'ला-ए-रुख़ पर नज़र में आग लगी
मिसाल-ए-तूर जला दिल जिगर में आग लगी
इनायतुल्लाह रौशन बदायूनी
ग़ज़ल
जादा-ए-रह ख़ुर को वक़्त-ए-शाम है तार-ए-शुआअ'
चर्ख़ वा करता है माह-ए-नौ से आग़ोश-ए-विदा'अ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क्या त'अज्जुब कि मिरी रूह-ए-रवाँ तक पहुँचे
पहले कोई मिरे नग़्मों की ज़बाँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ये फ़लक ये माह-ओ-अंजुम ये ज़मीन ये ज़माना
तिरे हुस्न की हिकायत मिरे इश्क़ का फ़साना